NATO एक प्रकार का अमेरिकी और यूरोपीय देशों से जुड़ा हुआ संगठन है। इसका पूरा नाम है नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन। इसका मुख्य कार्य यह कि अगर इसके सदस्य देशों में किसी पर कोई हमला होता है तो उसकी रक्षा करना और सैन्य सहायता प्रदान करना।।
जैसा कि आप जानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिकन और यूरोपियन देशों को इस बात का ख्याल आया की अगर विश्व में आगे युद्ध को रोकना है तो एक संगठन की स्थापना करनी होगी और उसी को ध्यान में रखते हुए NATO की स्थापना हुई। NATO की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को अमेरिका में हुई थी। NATO की स्थापना के समय कुल 12 देश इसके सदस्य थे, जो इस प्रकार है –
अमेरिका
ब्रिटेन
फ्रांस
बेल्जियम
कनाडा
डेनमार्क
आइसलैण्ड
इटली
लक्ज़मबर्ग
नीदरलैंड
नॉर्वे
पुर्तगाल
NATO की स्थापना के पश्चात शीत युद्ध समाप्त होने के पहले (13) यूनान, (14) पश्चिम जर्मनी, (15) स्पेन और (16) टर्की, इसके सदस्य देश बने। इसके पश्चात लगतार यह संगठन अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाता रहा। सन् 1999 में मिसौरी सम्मेलन में (17) पौलैण्ड, (18) हंगरी और (19) चैक गणराज्य जैसे देश NATO में शामिल हुये। इसके पश्चात 11 देश और सदस्य बनाये गये। (20) अल्बानिया (21) इस्टोनिया (22) क्रोएशिया (23) नॉर्थ मैकडोनिया (24) बल्गारिया (25) मोंटेनेग्रो (26) रोमानिया (27) लातविया (28) लिथुआनिया (29) स्लोवाकिया और (30) स्लोवेनिया। इस तरह NATO में सदस्य देशों की संख्या 30 हो गयी। वर्तमान में NATO का हेडक्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है।
NATO की स्थापना क्यों की गई थी
NATO की स्थापना का मुख्य उद्देश्य रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को कम करना था। क्योंकि उस समय सोवियत संघ बहुत प्रभावी हो गया था। इसी को ध्यान में रखते हुए जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ तब अमेरिका और यूरोपियन देशों ने मिलकर इस बात की गहन चर्चा की कि अगर रूस के प्रभाव को विश्व जगत में कम करना है तो सबसे पहले मिलकर एक ऐसा संगठन बनाना होगा जो उसके दायरे को कम करेगा। इसके लिए अमेरिका ने अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर नेटवर्क की स्थापना की। उस समय रूस काफी तेजी के साथ यूरोप देशों में साम्यवाद को स्थापित कर रहा था। जैसा कि आप सब जानते हैं कि रूस और अमेरिका के बीच रिश्ते हमेशा खराब रहते हैं। विश्व में इस बात को लेकर चर्चा होती है कि कौन विश्व में सुपरपावर के तौर पर अपने आप को स्थापित करेगा। इसी के कारण रूस और अमेरिका के बीच हमेशा टकराव की स्थिती बनी रहती है।
NATO संगठन का सदस्य बनने की शर्तें और नियम क्या हैं?
अगर कोई भी दुनिया का देश NATO का सदस्य बनना चाहता है तो उसके लिए पहली शर्त है उसका यूरोपियन देश होना। लेकिन NATO ने अपने नियमों में कुछ बदलाव भी किए हैं जो कि NATO का मकसद है कि पूरी दुनिया में अपने संगठन का विस्तार करें। इसी के लिए उसने कुछ ऐसे देशों को भी अपने संगठन में शामिल किया है जो यूरोपियन कन्ट्रीज नहीं है, जैसे अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन, मोरक्को ट्यूनिशिया ये भी अब NATO के सदस्य है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में भी NATO की भूमिका रही है। जैसा कि आपने पढ़ा होगा और जाना होगा तो NATO का मुख्य उद्देश्य युद्ध को रोकना नहीं बल्कि रूस को रोकना रहा है।
NATO के सदस्य होने के फायदे
आइए समझते हैं कि अगर कोई देश NATO की सदस्य हैं तो उसके क्या फायदे उस देश को मिलते हैं। अगर कोई भी देश ने NATO संगठन बनता है तो उसको कई प्रकार के फायदे मिलते हैं।
युद्ध की स्थिती में सदस्य देश की सैनिक सहायता करना – अगर कोई भी देश नाटो सदस्यों के ऊपर हमला करता है तो इसका मतलब साफ है कि उसने NATO के सभी देशों के साथ युद्ध करना ठान लिया है और वो युद्ध करने के लिए तैयार है।
NATO अपने सदस्य देशों को हर प्रकार की आधुनिक हथियार और उपकरण उपलब्ध करवाता है।
NATO सदस्य देशों की सुरक्षा की गारंटी भी लेता है।
NATO संगठन, सदस्य देशों को आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है।
NATO संगठन ने एक अलग से आर्मी बनाई है जिसका नाम है NATO आर्मी। इसका जो मुख्य उद्देश्य है वो है सदस्य देशों की सीमा की सुरक्षा करना।
क्या भारत NATO का सदस्य है?
अब आपको ये भी जानना चाहिए की क्या आप भारत ने NATO का सदस्य है या भारत और NATO के बीच में क्या संबंध है। यह आपको मालूम होना चाहिए कि भारत NATO का सदस्य नहीं है। लेकिन अमेरिकी सीनेट ने भारत देश को NATO सहयोगी देश का दर्जा देने के लिए विधेयक पारित किया है। अतः अमेरिकी सीनेटर ने हथियार निर्यात नियंत्रण अधिनियम जो कानून है। अर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट AECL इसमें संशोधन की मांग भी की है। इसके पहले अमेरिका यह दर्जा इजराइल और नॉर्थ कोरिया को दे चुका है।
NATO का संरचना
NATO कई संगठनों से मिलकर बनता है, जो निम्न है –
परिषद – जिसे कहा जाता है काउंसिल, यह NATO का सर्वोच्च अंग कहलाता है। इसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से होता है और NATO की जो मंत्री स्तरीय बैठक है, वो साल में एक बार होती है। इस परिषद का मुख्य उत्तरदायित्व है समझौते की धाराओं को लागू करना। यानी आपसी जो समझौता होगा उसके लिए सहमति तैयार करना।
उपरिषद – यह परिषद NATO के सदस्य देशों द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों की परिषद कहलाती है। ये NATO संगठन से संबद्ध सामान्य हितों वाले विषयों पर विचार करती है।
प्रतिरक्षा समिति – इसमें NATO के सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते हैं। यानी जो रक्षा मंत्री है। इसका मुख्य कार्य प्रतिरक्षा यानी डिफेंस रणनीति यानी पॉलिसी और NATO और गैर NATO देशों में सैन्य संबंधी विषयों पर विचार विमर्श करना होता है।
सैनिक समिति – इसे आर्मी कमिट, आर्म कमिटी कहा जाता है। इसका मुख्य कार्य NATO परिषद एवं उसके प्रति रक्षा समिति को सलाह देना होता है। इसमें सदस्य देशों के सेनाध्यक्ष जो उनके ये आर्मी, नेवी, एयरफोर्स के चीफ होते हैं या अगर तीनों की कोई चीज़ कमांडिंग ऑफिसर है तो वो इसमें भाग लेते हैं।
NATO आर्मी के मुख्य कार्य
NATO का निर्माण अपने सदस्य देशों की रक्षा करने के लिए हुआ है, जैसा कि मैंने आपको बताया। NATO के मुख्य कार्यों में निम्न है –
आतंकवाद की समस्या से निपटने का या आतंकवादी हमले के परिणामों का प्रबंधन करना और उसके लिए नई क्षमताओं और टेक्नोलॉजी का विकास करना।
NATO लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने और अपने सदस्य देशों की सीमाओं को हल करने के अलावा न केवल विश्वास का निर्माण करने का कार्य करता है, बल्कि रक्षा और सुरक्षा मामलों पर परामर्श एवं सहयोग की अनुमति भी देता है।
NATO शांतिपूर्ण तरीके से विवादों को हल करने के लिए और राजनयिक प्रयास भी करता है। यदि यह प्रयास विफल हो जाते है तो उसे इस प्रकार के संकट प्रबंधन कार्यों को करने के लिए सैन्य शक्ति का भी प्रयोग करना पड़ता है।
NATO के मुख्य कार्य सामूहिक सुरक्षा संकट प्रबंधन और सहकारी सुरक्षा है जिससे वर्तमान रणनीति टिकाऊ धारणा के अंतर्गत निर्धारित किया जाता है।
NATO के कुछ महत्वपूर्ण अभियान
NATO अफगानिस्तान में एक गैर लड़ाकों मिशन का नेतृत्व करता है जो अफगान सुरक्षा बलों और संस्थाओं को प्रशिक्षण, सलाह और सहायता प्रदान करता है। अफगानिस्तान में NATO के कार्य कितने सफल हुए हैं, इसका परिणाम हमारे सामने ही है की अभी वर्तमान में तालिबान का कब्जा वहाँ हो गया है और NATO और अमेरिकन सरकार अफगानिस्तान में पूरी तरह से विफल और असफल मालूम पड़ती है।
NATO ने अगस्त 2003 से दिसंबर 2014 तक संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के तहत आईएसआईएस यानी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल की कमान संभाली थी और उसके बाद जनवरी 2015 में संकल्प सहायता मिशन भी शुरू किया था। अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने का प्रयास NATO द्वारा किया गया है जिसके बारे में हमने बात कर ही ली।